क्या आप जानते है करवा चौथ के व्रत की सही विधि

19 Oct, 2016 A2Zstory Editorial
karwa chauth poojan ki vidhi

क्या आप जानते है करवा चौथ के व्रत की सही विधि? कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। यह व्रत केवल शादी-शुदा महिलाओं के लिये ही होता है। हम आपको बताने जा रहे है करवा चौथ के व्रत की सही विधि :

  1. सूर्योदय से पहले स्‍नान करने के बाद व्रत रखने का संकल्‍प लें और सास मां के द्वारा भेजी गई सरगी खाएं। सरगी में  बहुत सी मिठाई, फल, पूड़ी, सेंवई और साज-श्रंगार का समान दिया जाता सकता है। सरगी में प्‍याज और लहसुन से बना भोजन न खाना चाहिए।
  2. सरगी करने के बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जाता है। पूरे दिन अपने मन में मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का ध्‍यान करते  रहें।
  3. दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा का चित्र अंकित करें। ऐसा चित्र अंकित करने की कला को पुरानी परंपरा  में करवा धरना कहा जाता है।
  4. इसके बाद आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। और बहुत सारे पक्के पकवान बनाएं।
  5. ये सब हो जाने के बाद पीली मिट्टी से मां गौरी और गणेश जी का स्‍वरूप बनाइये। मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्‍वरूप बिठाइये। इन स्‍वरूपों की पूजा संध्‍याकाल के समय पूजा करने के काम आती है।
  6. माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान करवाये और उन्‍हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्‍य सुहाग, श्रींगार सामग्री अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें।
  7. भेंट देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। गेहूं और ढक्‍कन में शक्‍कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्‍वास्तिक बनाएं।
  8. गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें। इस मंत्र का जाप करते रहे  - 'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥' ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही पूजा करती हैं। हर क्षेत्र के अनुसार पूजा करने का विधान और कथा अलग-अलग होता है। इसलिये कथा में काफी ज्‍यादा अंतर पाया गया है।
  9. अब करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिये। कथा सुनने के बाद आपको अपने घर के सभी वरिष्‍ठ लोगों का चरण स्‍पर्श कर लेना चाहिये।
  10. रात्रि के समय छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें उसे अर्घ्य प्रदान करें। फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें। फिर पति देव को प्रसाद दे कर भोजन करवाएं और बाद में खुद भी करें।
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